Saturday, September 29, 2018

कतरनें.


(तस्वीर गूगल सर्च से साभार )


किसी को देखकर आपको महसूस होता है कि उसके साथ आपको लम्बा जीवन बिताना है. आप ऐसे ही दुनिया से हार कर मर जाने को नहीं पैदा हुए हैं. कोई लड़ाई में आपके साथ है. कम से कम एक इन्सान के लिए आप कभी पराजित नहीं है. वह आपके साथ रहेगा.साथ जियेगा. अनगिनत ख़ुशी - दुःख के क्षण आपके साथ बिताएगा. यह मौत के डर को भी कम कर देने वाली सांत्वना है. ऐसा ही होता है प्रेम.

अगर आपके मन में एक प्रतिशत भी शंका है कि जिसे आप प्रेम करते हैं वह आपको एक दिन छोड़ जाएगा तो यकीन मानिए ऐसा ही होगा.मन झूठ नहीं बोलता. खुशनुमा एहसासों के लिए बोल भी दे, दुःख की पहचान और पूर्वाभास के बाबत मन कभी झूठ नहीं बोलता. इसके जवाब में डरिए मत, मन मजबूत कर लीजिये. प्रेम को दुखद अंत वाली एक घटना की तरह बीत जाने दीजिये.दुःख की भव्य गरिमा के साथ. दु:खी होना कटु या निराश होना नहीं है, यह खुद को समझाते रहिए. अपने साथ जीना सीख लीजिये. उस आदमी/ औरत का इंतजार करिए जिसे देखकर मन को भरोसा हो, थिर पानी जैसा साफ़ भरोसा कि आपकी तलाश खत्म हुई.

फिर उसका हाथ अपने हाथ में थाम कर कहिए - तुम्हे देख कर मुझे एहसास हुआ कि मैं एक तवील इंतजार में थी/था.

वह ज़रूर आपके प्यार को समझेगा. आपके इंतजार को अपनाएगा.
क्योंकि ऐसा ही हमेशा होता है. क्योंकि ऐसा ही होना चाहिए.


( यह एक अप्रकाशित फिक्शन का हिस्सा है. )

Tuesday, August 7, 2018

स्मृतियाँ.

दो दिन पहले मैंने जयंत महापात्र को देखा, बात की. उनका कविता पाठ सुना. वे मंच की सजावटी हलकी रौशनी में कविता नहीं पढ़ नहीं पा रहे थे. लोगों को मोबाईल की रौशनी देते हुए उनके बगल में खड़े होकर उनकी मदद करनी पड़ी. जब वे मंच से उतरे हाल में उपस्थित सभी लोग उनके सम्मान में खड़े हुए. तालियों से सभागार गूंज रहा था. यह इस आधुनिकतम शहर की बात है. वह शहर जिसे सिर्फ पैसे से जोड़कर देखा जाता है. मुझे एहसास हुआ कविता का सम्मान अब भी शेष है इस देश में, ऐसा ही अनुभव हर बार तब हुआ है जब मैंने अपने प्रिय कवियों को घेरती भीड़ देखी है.

कविता के प्रेमी प्रेत की तरह दुनिया के अँधेरे में अदृश्य उपस्थित रहते हैं, कवि उनके शामन (shaman) है. वे सिर्फ तब प्रकट होते हैं जब उनका कवि उनके समक्ष होता है, उन्हें बुलाता है, उनका आह्वान करता है.

(कविता महोत्सव, पांच अगस्त - 2018, बंगलुरु )

Thursday, January 25, 2018

समीक्षाएं, जो प्राप्त हुयी.


लवली गोस्वामी का काव्य संसार सुभाषितों का संसार है. उनके यहाँ पग - पग पर जीवन के सुभाषित दर्ज हैं - डॉ ओम निश्चल.  (जनवरी - मार्च २०१८ "लमही.")




एक यात्रा से लौटकर घर पहुंची तब लमही पत्रिका का मार्च - जनवरी १०१८ का अंक डाक से मिला. सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ ओम निश्चल ने मेरी कविताओं पर यह टिप्पणी लिखी है. आप पढना चाहें तो चित्र डाउनलोड करके बड़ा कर लें.

Wednesday, January 3, 2018

साल की पहली प्रकाशित कविता (2018)

यह मेरी ओर से आपके लिए लिखी, साल की पहली प्रकाशित कविता है. "आजकल" पत्रिका  के जनवरी अंक में यह पहली दफ़ा प्रकाशित हुयी है. 

आदतें – जैसी मैंने देखीं

पत्ती कांप कर एक साँस खींचती है
फिर गिर जाती है
हरापन एक आदत है, बदरंग होकर गिर जाना, एक फैसला.

कुछ इच्छाओं को हमने कभी नहीं पहना
वे वार्डरोब में पड़ी - पड़ी बदरंग हो गयीं


जिन इच्छाओं को हम जी भर पहन कर घूमे
वे अब कई जगह से फट गयी हैं.

एक पत्थर इसलिए खफ़ा है कि
नदियों ने उससे किनारा कर लिया

एक दीवार दीमकों से डरकर
 असमय खुद को ढहा लेना चाहती है.

काया के तल में गहरे बैठता जाता है दुःख
इसलिए उम्र बढ़ने के साथ आदमी धीमा हो जाता है

चलते समय उसके पांव जमीं पर नहीं पड़ते
खुशियाँ, आदमी को हल्का कर देती हैं.

हम ऐसी जलधार हैं, जिन्हें हिचकियाँ आती हैं
लेकिन हम अपने मुहानों तक कभी लौट नहीं पाते

एक दिन मैं पत्तों को झिंझोड़कर जगाऊंगी
उनसे पूछूंगी, क्या तुम परिंदों को देखकर बहक गए थे
जब उड़ने के लिए तुमने टहनी से छलांग लगा दी?

इस कविता को "सुनो कविता " के यूट्यूब चैनल पर प्रीता व्यास जी ने अपनी आवाज दी है, इच्छा हो तो आप अवश्य सुनें.

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